Thursday, 22 October 2015

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले मित्रों के लिए - 3 (जब तक तोडूंगा नही तब तक छोडूंगा नही)

दोस्तों आज के अंक में हम पेश करते है । एक और motivational लेख । आशा है की आपको ये पसंद आएगी। दोस्तों एक बात हमेशा यद् रखना अगर लक्ष्य पाना है तो दिल में लक्ष्य पाने की जिद्द और आग होना चाहिए। आग लगाना चाहिए । ये बात यद् रखना दोस्तों दुनिया में कुछ भी असंभव नही है। बस burning desire होनी चाहिए ।
कई बार जिंदगी में ऐसा होता है कि आपने खूब मेहनत की और आपको अपने सुखद परिणाम की आशा थी मगर नतीज़े आशाओं और अपेक्षाओं के विपरीत निकले। आपने फिर प्रयास किया और साबित करने की कोशिश की , कि आप निराश नहीं होंगे और अपनी मंज़िल को पाकर रहेंगे। इस बार फिर से आप नाकामयाब रहे और इसके बाद इस तरह से निराश हुए कि व्यवस्था या किस्मत में ही दोष मानकर खुद को तसल्ली दे रहे हैं। मित्रो, ऐसा ज्यादातर अभ्यर्थियों के साथ होता है और मेरी नज़र में यही एक फर्क है जो एक सफल और असफल में रह जाता है। इसको समझने की कोशिश करते हैं - माना कि 'अ' ने बार बार प्रयास किया मगर हर बार पूर्ण तैयारी के बावज़ूद असफल रहा। 'अ' अब मानता है कि उसकी किस्मत खराब है या किस्मत में ही नहीं लिखा है कि वो कुछ बने। उसके पास इसके जवाब में आपको या मुझे कहने के लिए  कुछ तर्क है जैसे -
1. 'ब' या 'स' को तो कुछ भी नहीं आता है। कभी भी आप उसकी और मेरी किसी विषय पर पकड़ देख लीजिए , फिर भी वह तो चयनित हो गया और मैं अभी भी असफल।
2. जो कामयाब हो गए है आपकी तरह , वो ये डायलॉग मार सकते हैं कि किस्मत - विस्मत कुछ नहीं होती है। कामयाबी पाने के बाद कहना सरल है अगर बेरोजगार होते तो ऐसा नहीं कहते।
3. व्यवस्था में कमी हैं - चैक , जैक आदि आदि
        मित्रो , अब मैं इन तीनों के बारे में  'अ' से कुछ पूछना और कहना चाहता हूँ -
1. आपने किस आधार पर माना कि आपकी तैयारी बहुत अच्छी है और आप चुने जाने के लिए पात्र हैं? क्या किसी कोचिंग सेंटर में आपके उससे ज्यादा नंबर आ जाते हैं या कभी अपने कमरे में तैयारी करते वक़्त आपने उससे कुछ सवाल पूछे और उसको नहीं आए , इन सब के आधार पर आप अपनी तैयारी को बेहतर बता सकते हैं? हो सकता है कि किसी अभ्यर्थी की सचमुच विषय पर  ज्यादा बेहतर पकड़ हो मगर यदि वह परीक्षा कक्ष के वातावरण में घबरा जाता है या उसका समय प्रबंधन दूसरे अभ्यर्थी जिसकी अपेक्षाकृत विषय पर पकड़ तो कमज़ोर है मगर वह प्रस्तुतीकरण और समय प्रबंधन में बेहतर है, से कमतर है तो हो सकता है कि वह अनुतीर्ण हो जाए और बाद वाला चयनित । तो क्या ऐसे में किस्मत को दोष दिया जा सकता है ? मित्रो , अपनी तैयारी का मूल्यांकन आप विषय पर प्रामाणिक पकड़ , प्रभावी प्रस्तुतीकरण , तथ्य - सैद्धांतिक व्याख्या , व्यावहारिक समझ और समय प्रबंधन की कसौटियों पर करें। कई अन्य सूक्ष्म कारक भी हैं जैसे हस्तलेखन , सुपाठ्यता , लेखनगति आदि जिन्हें भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
2. किसी रास्ते को पार करने वाला ही तो बता सकता है कि उस रास्ते पर कहाँ कांटे हैं या कहाँ गढ्ढा है। अब उसी तरह सफल होने वाले को लगता है कि सही और नियोजित तैयारी से अगर कोई परीक्षा देता है तो सफल हो ही जाता है इसीलिए किस्मत कुछ नहीं होती है।  अगर कोई ऐसा कहता है तो आप उससे सहमत क्यों नहीं हैं? आपने अपने साथ किस्मत को जोड़कर खुद को निर्दोष बना लिया है। वास्तव में आपकी तैयारी  और परीक्षा में प्रस्तुतीकरण में  ही कहीं न कहीं त्रुटि रही होगी वरना व्यक्तिश: और संस्थागत तौर पर तो चयनकर्त्ता आपके दुश्मन नहीं हैं।
3. व्यवस्था को दोष क्यों देते हैं आप ? कभी भी कोई सीधे सीधे आपसे मिला जिसने कहा हो कि उसने फलां फलां पदीय व्यक्ति को इस तरह से रिश्वत दी तो मैं चयनित हो गया और अगर ऐसा है भी तो हम उन चयनित उदाहरणों को सामने क्यों नहीं रखते हैं जो गरीब पृष्ठभूमि से निकले हैं  और जिन्होंने अपनी पढ़ाई भी तंगहाली में की है। क्या रिक्शेवाले या मज़दूर के बेटे या किसी वेटर या किसी झुग्गीझौंपड़ी वाले के आईएएस या अन्य उच्च सेवाओं में चुना जाना हमने नहीं सुना है ? उनके पास तो साक्षात्कार के लिए अच्छी औपचारिक ड्रेस खरीदने के भी पैसे नहीं थे। फिर भी वे सब चुने गए। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि हम सभी लोग अपनी सुविधा के हिसाब से तर्क और उदाहरण चुनते हैं।
       
                     मित्रो , मेरा इस आलेख के पीछे एक बहुत ही पवित्र-सा उद्देश्य है कि आप बराएमेहरबानी किस्मत / चैक-जैक /व्यवस्था को आपके और आपकी कामयाबी के बीच नहीं लाएं। सफलता सिर्फ एक वाक्य से परिभाषित हो सकती है मगर असफलता के लिए चारों तरफ देखना पड़ता है और फिर कई तर्कों [ या कुतर्कों ? ] को अपने पक्ष में तलाशना पड़ता है। कामयाबी के लिए आपको निरंतर प्रयास की आवश्यकत्ता है। आप परीक्षा आवेदन भरकर चंद महीनों या हफ्तों कि तैयारी से उसे पीछे नहीं छोड़ सकते हैं जिसने लम्बे समय से लक्ष्यानुरूप मेहनत की हो और विषय को आत्मसात किया हो। मेरा आपसे अनुरोध है कि व्यर्थ की निराशाजनक बातों को ना सुनें और केवल सकारात्मक सोचते हुए आगे बढ़ें और अपने सपनों को छूएं।  
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