Wednesday, 21 October 2015

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले मित्रों के लिए - 2 [रुक जाना है मर जाना ही….]

आज के इस अंक मे पेश है प्रतियोगी
परीक्षा की तैयारी
करने वाले उन मित्रों के लिए जो किसी एक
प्रकार की ही
परीक्षा में दो या इससे ज्यादा बार असफल हो
जाते हैं .,ऐसे मित्रों  लिए हौसले की निरंतरता
बनाए रखना बड़ा कठिन काम है। जब
अभ्यर्थी पहली बार
किसी परीक्षा में असफल होता
है तो उसके पास स्वयं को समझाने के लिए अनेक तर्क
होते हैं जैसे - पहली बार ट्रायल के लिए
दिया था या सिर्फ समझना चाहता था या कोई बात
नहीं , गिरना बुरा नहीं होता
है या इस बार मन लगाकर पढूंगा और चयनित हो जाऊँगा
आदि -आदि। परन्तु जब वही
अभ्यर्थी दो से ज्यादा बार असफल होता
है और प्रत्येक असफल प्रयास उसका हौसला कम
करता जाता है और खुद की सफलता के प्रति
शंकाएं बढ़ने लगती हैं। मैं आज दो से या
उससे ज्यादा बार असफल हुए ऐसे दोस्तों से
ही बात करना चाहता हूँ।
मित्रो , सबसे पहले तो मैं यह
स्पष्ट कर दूँ कि मुझे पता है कि आप सब ऐसे बहुत
से उदाहरण जानते हैं जिनमें कोई व्यक्ति अनेक बार
असफल होकर भी कामयाब हो गया , आप
मकड़ी वाली , लिंकन
वाली सब कहानियां जानते हैं। मैं आपसे
इसीलिए कोई कहानी
की बात नहीं करूंगा। मैं तो सिर्फ
आपसे ये कहना चाहता हूँ कि इस वक़्त आपको
सबसे ज्यादा खुद को समझने की जरूरत है।
अगर आप जो कर रहे हैं , उससे संतुष्ट हैं तो
आप प्रयास ना करें और अगर असंतुष्ट हैं तो रुके
नहीं। कई बार संतुष्टि और असंतुष्टि का पता
ही नहीं लग पाता तो एक
तरीका है जानने का - अगर आपको कोई
बात / इच्छा / ख्वाब अंदर ही अंदर सालता
है या एक घुटन या कसक पैदा होती है
तो समझिए आप कुछ और पाना चाहते हैं। इतना पता
अगर आपको है और फिर भी आप सोचते
हैं कि आप नहीं कर पाएंगे या आप उतने
काबिल नहीं हैं तो आप तैयार रहें खुद
को गुमनामी की भीड़
में खो जाने देने के लिए।
पहली लड़ाई तो खुद से
ही होती है। खुद को समझा
लिया तो सब ठीक हो जाएगा।
असफलताएं तो आपके और आपकी
कामयाबी के बीच केवल वक़्त
ही तो बढ़ाती है आपको नाकारा
थोड़ी साबित कर रही हैं। सब
इंसान अलग- अलग क्षमताएं लेकर पैदा होते हैं और
हालात , पूर्व तैयारी , समझ , पारिवारिक और
परिवेश - ना जाने कितनी बातें
कामयाबी तय करती हैं। फिर
हर बार हम इस बात से क्यों परेशान हों कि मेरा
पहली या दूसरी बार या
तीसरी बार में चयन
नहीं हुआ और उसका हो गया। होने
दो किसी और का चयन - उसकी
ख़ुशी में शामिल हो सको तो सबसे अच्छा वरना
अपना काम करेंगे। हमें अपने और अपनों के लिए कामयाब
होना है। हम अगर अपने सपनों को पूरा
नहीं करेंगे और थक जाएंगे तो दस-
पंद्रह साल बाद केवल बहाने बनाकर औरों को
कहानियां सुनाकर खुद को निर्दोष बताएंगे या नकारात्मक
बातें करके औरों को निराश करेंगे।
अगर बाद की घुटन और
कसक के साथ नहीं जीना है
तो छोडो ये प्रयासों की संख्या गिनना। बस
लक्ष्य को पाएंगे। सपने को मत मरने
दीजिएगा। रोज़ खुद से वायदा करें कि मुझे ये
करके दिखाना है। थोड़ा तैयारी का
तरीका बदल लें , कुछ किताबें बदल लें या नया
एडिशन ले लें। पढ़ने वाले कमरे में अंदरुनी
बदलाव कर लें। थोड़ा खुद के लिए वक़्त निकालकर अपने
फेफड़ों में ताज़गी और इरादों में दृढ़ता लाएं। कुछ
अच्छे सकारात्मक दोस्तों से बात करें। हवा
की तरह बहने दें एक बार खुद को एक
हफ्ते के लिए। ज्यादा परेशान हैं तो एक हफ्ते के
लिए किताबों को ना छुए। नई जगह घूमें / फिल्म देखें /
पुराने दोस्तों के पास जाएं/ अपनी
हॉबी को वक़्त दें.…… फिर लौटे वापिस नए
जोश और इस बात के वायदे के साथ कि आप अब
कामयाबी पाने तक नहीं रुकेंगे।
आपको अगर दो या तीन बार  असफलता
मिली है तो आप फ्रेशर की
तुलना में ज्यादा अनुभवी हैं। अनुभव के
लिए वक़्त लगता है और  वक़्त दे दिया है इस
अनुभव को पाने में।
आप खुश रहें , सकारात्मक रहें
और सदा सोचें कि सबसे पहले अपने - आप से लड़ना
है। दिनों को निराशा के ताले और रातों को चिंताओं के पहरों
से मुक्त करें। दिवाली से पूर्व हौसले और
उम्मीद का एक दीया अपने अंदर
जलाकर इस निराशा के अन्धकार को दूर करें।

रुकना है मर जाना ही , निर्झर यह झर कर  कहता है .…….

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